मुशावरत ने अमेरिका-इज़राइल और ईरान के बीच संघर्ष विराम का स्वागत किया,

विश्व शांति को दरपेश खतरे पर गहरी चिंता जताई और फ़िलस्तीन में जारी युद्ध अपराधों की निंदा की नई दिल्ली : ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस-ए-मुशावरत, जो भारत के प्रमुख मुस्लिम संगठनों का महासंघ है, अमेरिका-इज़राइल और ईरान के बीच घोषित संघर्षविराम का स्वागत करती है। यह युद्धविराम पश्चिम एशिया में और अधिक तबाही व तनाव से बचाव के लिए एक सकारात्मक और आवश्यक कदम है। मुशावरत के अध्यक्ष श्री फ़िरोज़ अहमद एडोकेट ने युद्धविराम का स्वागत करते हुए कहा है कि ईरान पर के हमले एक संप्रभु देश पर अवांछित आक्रमण और अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन हैं। राष्ट्रपति ट्रम्प ने हमले औरआक्रामकता से विश्व व्यवस्था और क्षेत्र की शांति के लिए गंभीर खतरे पैदा कर दिए हैं। जबकि मुशावरत फ़िलस्तीन में इजरायली सेना द्वारा की जा रही निरंतर कार्रवाई, नागरिकों की मौत, और व्यापक मानवीय संकट को लेकर गहरी पीड़ा और कड़ी निंदा व्यक्त करती है। अस्पतालों, स्कूलों, पत्रकारों और राहतकर्मियों को निशाना बनाना अंतरराष्ट्रीय क़ानून का गंभीर उल्लंघन है और युद्ध अपराध है। मुशावरत को इस बात पर भी गहरी चिंता है कि अमेरिका जैसी ताक़तवर वैश्विक शक्तियाँ इज़राइल को निरंतर समर्थन देकर उसके अत्याचारों को बढ़ावा दे रही हैं। फ़िलस्तीनियों पर दशकों से थोपे गए अन्याय, घेराबंदी, जबरन बेदखली और मूल अधिकारों से वंचित किए जाने की नीति अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए एक गंभीर चुनौती है।  मुशावरत  अंतरराष्ट्रीय समुदाय, संयुक्त राष्ट्र और वैश्विक नागरिक समाज से मांग करती है कि वे: मुशावरत फ़िलस्तीन के पीड़ितों के साथ एकजुटता व्यक्त करती है और दुनिया भर में न्याय, मानव गरिमा और स्वतंत्रता के लिए आवाज़ उठा रहे सभी लोगों के साथ खड़ी है।

डॉ अली महमूदाबाद की गिरफ्तारी की मुशावरत द्वारा कड़ी निंदा

एक प्रतिष्ठित विद्वान, राजनीतिक विज्ञान के प्रोफेसर, भारत के मुस्लिम संगठनों और प्रमुख व्यक्तियों के परिसंघ मुशावरत के माननीय सदस्य और प्रतिष्ठित विश्लेषक डॉ. अली महमूदाबाद पर देशद्रोह का आरोप लोकतसंत्र की आत्मा पर हमला है नई दिल्ली: ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस-ए-मुशावरत (AIMMM) ने डॉ. अली महमूदाबाद के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने और उनकी गिरफ्तारी पर गहरी चिंता और कड़ी निंदा व्यक्त की है। उन पर कथित रूप से “देश-विरोधी” टिप्पणियां करने का आरोप दुर्भाग्यपूर्ण है। मुशावरत ने अपने बयान में कहा कि डॉ. महमूदाबाद एक सम्मानित अकादमिक और बुद्धिजीवी हैं, जो राजनीतिक चिंतन और लोकतांत्रिक विमर्श में अपनी विद्वत्तापूर्ण भागीदारी के लिए जाने जाते हैं। असहमति के विचारों या आलोचनात्मक अकादमिक विश्लेषण को “देश-विरोधी” कहना एक खतरनाक प्रवृत्ति है जो हमारे संविधान में निहित लोकतंत्र, शैक्षणिक स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आज़ादी जैसे मौलिक सिद्धांतों को खतरे में डालती है। किसी विद्वान को उनके अकादमिक या सार्वजनिक वक्तव्यों के लिए गिरफ्तार करना न केवल बौद्धिक स्वतंत्रता पर हमला है, बल्कि यह विचारों को अपराध घोषित करने की खतरनाक मिसाल है। यह हमारे समाज में आलोचनात्मक संवाद और विभिन्न दृष्टिकोणों के प्रति बढ़ती असहिष्णुता को दर्शाता है। मुशावरत के अध्यक्ष श्री फ़िरोज़ अहमद एडवोकेट ने प्रशासन से अपील की है कि वे डॉ. अली पर लगाए गए आरोपों को तुरंत वापस लें, उन्हें अविलंब रिहा करें, और उनकी सुरक्षा व गरिमा सुनिश्चित करें। मुशावरत नागरिक समाज, शैक्षणिक संस्थानों और सभी न्यायप्रिय नागरिकों से अपील करती हैं कि वे डॉ. अली के साथ एकजुटता प्रकट करें और आलोचनात्मक आवाज़ों को दबाने के लिए क़ानून के दुरुपयोग का विरोध करें। भारत की ताक़त उसकी बहुलता, वैचारिक विविधता और लोकतांत्रिक मूल्यों में निहित है। बलपूर्वक या धमकी देकर इन सिद्धांतों को कुचलना लोकतंत्र की आत्मा को आघात पहुँचाना है।

मशावरत के पूर्व अध्यक्ष नवेद हामिद “क़ायद-ए-मिल्लत पुरस्कार” से सम्मानित

प्रो۔ विपिन कुमार त्रिपाठी और जॉन दयाल को भी सार्वजनिक जीवन में सत्यनिष्ठा के लिए सम्मानित किया गया  नई दिल्ली: दक्षिण भारत के प्रतिष्ठित संस्थान, क़ायद-ए-मिल्लत एजुकेशनल एंड सोशल ट्रस्ट (चेन्नई) ने शनिवार को आयोजित एक भव्य समारोह में ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस-ए-मशावरत के पूर्व अध्यक्ष और मूवमेंट फॉर एम्पावरमेंट ऑफ़ इंडियन मुस्लिम्स के महासचिव नावेद हामिद, प्रसिद्ध  मानवाधिकार कार्यकर्ता जॉन दयाल, तथा सद्भावना मिशन के संस्थापक, प्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रो. विपिन कुमार त्रिपाठी को मद्रास हाई कोर्ट के पूर्व जज, जस्टिस के.एन. बाशा के हाथों “क़ायद-ए-मिल्लत पुरस्कार” से सम्मानित किया। जनजीवन में सत्यनिष्ठा के लिए दिया जाने वाला यह वार्षिक पुरस्कार एक प्रशस्ति पत्र, पाँच लाख रुपये और सम्मान चिन्ह व शाल पर आधारित है।इस अवसर पर जस्टिस बाशा ने पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं को बधाई देते हुए कहा कि ऐसे महान व्यक्तित्वों को सम्मानित करने का अवसर पाकर वे स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं, क्योंकि ये वे लोग हैं जो अंधकारमय वातावरण में प्रकाशस्तंभ का कार्य करते हैं। ट्रस्ट के महासचिव श्री एम जी दाऊद मियाखान ने कहा, “पुरस्कार विजेताओं को भारत में राजनीतिक और व्यक्तिगत जीवन में ईमानदारी के उनके बेदाग ट्रैक रिकॉर्ड के आधार पर दिया जाता है।” जबकि पूर्व बिशप डॉ वी देवसागयाम ने कहा कि “हम आपकी सेवाओं को सम्मान देने, आपकी पहल का समर्थन करने और यह कामना करने के लिए यहां हैं कि आप सभी बाधाओं के बावजूद अपनी लड़ाई जारी रखें।समारोह की अध्यक्षता क़ायद-ए-मिल्लत ट्रस्ट के अध्यक्ष क़ाज़ी डॉ. सलाहुद्दीन मोहम्मद अय्यूब ने की, जबकि पुरस्कार की घोषणा और विजेताओं का परिचय ट्रस्ट के महासचिव एम.जी. दाऊद मियाँख़ान ने किया। इस अवसर पर मद्रास विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. एस. सादिक और चर्च ऑफ़ साउथ इंडिया के बिशप डॉ.  देवसगायम का भी सम्मान किया गया। ट्रस्ट के महासचिव दाऊद मियाँ ख़ान, कोषाध्यक्ष एस. मुश्ताक़ अहमद और क़ायद-ए-मिल्लत कॉलेज के प्राचार्य डॉ. एम.ए. तवाब ने महानुभावों को प्रशस्ति पत्र, स्मृति चिन्ह और शॉल भेंट किए।2024 के “क़ायद-ए-मिल्लत पुरस्कार” की घोषणा फरवरी 2025 में की गई थी। पुरस्कार चयन समिति में डॉ. वसंती देवी (पूर्व कुलपति), डॉ. देवसगायम (पूर्व बिशप), श्री पनीरसेल्वम (रीडर्स एडिटर, द हिंदू) और दाऊद मियाँख़ान (महासचिव, क़ायद-ए-मिल्लत ट्रस्ट) शामिल थे।इससे पूर्व ट्रस्ट ने यह पुरस्कार जिन प्रमुख हस्तियों को प्रदान किया है, उन में तीस्ता सीतलवाड़,  और नीलाकणु (2015), एन. शंकरैया और सैयद शाहाबुद्दीन (2016), माणिक सरकार और मोहम्मद इस्माइल (2017), भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति डॉ. हामिद अंसारी और अरुणा रॉय (2018), ए.जी. नूरानी और थिरु मावलावन (2019), हर्ष मंदर और बिल्कीस बानो (2020), डॉ. इरफ़ान हबीब और संयुक्त किसान मोर्चा (2021), थिरु वी रामणी और द वायर न्यूज़ पोर्टल (2022), एन. राम (द हिंदू) और डॉ. अबू सालेह शरीफ़ शामिल हैं।यह पुरस्कार क़ायद-ए-मिल्लत मौलवी मोहम्मद इस्माइल की स्मृति में प्रदान किया जाता है, जो देश और समुदाय के निःस्वार्थ सेवक, स्वतंत्रता सेनानी और देश के प्रतिष्ठित नेता थे। भारत की आज़ादी के बाद देश और समुदाय के निर्माण में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। वे संविधान सभा के सदस्य, लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य, और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के संस्थापक नेता थे। वे ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस-ए-मशावरत के संस्थापक सदस्यों में भी शामिल थे।क़ायद-ए-मिल्लत ट्रस्ट ने मौलवी मोहम्मद इस्माइल की चालीसवीं पुण्यतिथि पर इस पुरस्कार की स्थापना की थी, जिसे प्रत्येक वर्ष सार्वजनिक जीवन में सक्रिय प्रतिष्ठित व्यक्तियों को प्रदान किया जाता है।

पहलगाम की आतंकवादी घटना की निंदा

यह मानवता के दुश्मनों की करतूत है। मासूम सैलानियों के हत्यारे न तो कश्मीर के हितैषी हो सकते हैं और न ही मुसलमानों के। इस्लाम में आतंकवाद की कोई जगह नहीं है: ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस-ए-मुशावरत नई दिल्ली : पहलगाम में आतंकवादियों द्वारा मासूम सैलानियों की हत्या एक घिनौना और निंदनीय कृत्य है, जिसकी बिना किसी शर्त के कड़ी निंदा की जानी चाहिए। बेगुनाहों के हत्यारे न तो कश्मीर के दोस्त हो सकते हैं और न ही मुसलमानों के। जिसने भी यह बर्बर कार्रवाई की है, वह कश्मीर और इस्लाम दोनों का दुश्मन है। यह बातें मंगलवार को मुस्लिम संगठनों के महासंघ ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस-ए-मुशावरत के अध्यक्ष फिरोज़ अहमद एडवोकेट ने पहलगाम में 28 सैलानियों की निर्मम हत्या के संदर्भ में कहीं। उन्होंने कहा कि इस्लाम में आतंकवाद की कोई जगह नहीं है, और क़ुरआन ने एक बेगुनाह की हत्या को समस्त मानवता की हत्या के समान बताया है। उन्होंने इस घटना की तत्काल जांच कर आवश्यक कार्रवाई की मांग की। कहा कि शांति के दुश्मनों को समाज को बांटने की इजाज़त नहीं दी जानी चाहिए। हमें अपने देश और एकता पर हुए इस हमले के खिलाफ एकजुट होना चाहिए। उन्होंने कहा कि जो लोग यह अफवाह फैला रहे हैं कि हमलावर धर्म और नाम पूछकर हत्या कर रहे थे, उनके खिलाफ भी जांच और कार्रवाई होनी चाहिए, क्योंकि प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि हमलावर जंगल से अंधाधुंध गोलीबारी कर रहे थे। मशावरत के अध्यक्ष ने कहा कि हम धर्म के आधार पर अपराध को देश और समाज की शांति के लिए घातक मानते हैं। मीडिया को इस ओर ध्यान देना चाहिए कि जहाँ आतंकवादियों ने निर्मम हत्याएं कीं, वहीं आम कश्मीरी जनता ने इस आतंकवादी कार्रवाई से नफरत और विरोध प्रकट किया। मस्जिदों से इस कृत्य की निंदा की जा रही है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि आम कश्मीरी मुसलमान कश्मीर में शांति और सद्भाव चाहता है और उसके दिल में मानवीय संवेदना और भाईचारे की भावना जीवित है। मशावरत ने कहा कि इस दुखद घटना को धार्मिक रंग देना गलत और गुमराहकुन है। मृतकों में केवल गैर-मुस्लिम ही नहीं, बल्कि मुसलमान भी शामिल है। घटनास्थल से प्राप्त खबरों के अनुसार हमलों के दौरान स्थानीय लोगों ने अपनी जान जोखिम में डालकर कई सैलानियों की जान बचाई और घायलों को अस्पताल पहुंचाया। हमले के बाद देर तक कोई सरकारी सहायता नहीं पहुंची, और घायलों को अस्पताल ले जाने के लिए वहां कोई वाहन भी मौजूद नहीं था। ऐसे समय में स्थानीय लोग अपने घरों से निकलकर आगे आए और जिन लोगों पर हमला हुआ था, उनकी जान बचाई और अपनी जान की परवाह किए बिना उन्हें नजदीकी अस्पताल तक पहुंचाया।

लोकसभा से वक़्फ़ संशोधन विधेयक पारित होने पर मुशावरत का असन्तोष

बीजेपी और उसकी सहयोगी पार्टियाँ न्याय के तक़ाज़ों और संविधान की भावना का उल्लंघन कर रही हैं: फ़िरोज़ अहमद एडवोकेट नई दिल्ली: ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस-ए-मुशावरत ने लोकसभा में वक़्फ़ संशोधन विधेयक 2024 के पारित होने पर गहरा असन्तोष व्यक्त किया है और कहा है कि बीजेपी और उसकी सहयोगी पार्टियाँ न्याय के सिद्धांतों और देश के संविधान व क़ानून की आत्मा को रौंद रही हैं।  मजलिस-ए-मुशावरत के अध्यक्ष, एडवोकेट फ़िरोज़ अहमद ने कहा कि यह विधेयक संविधान में दी गई धार्मिक स्वतंत्रता, समानता और न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है और संविधान के मौलिक अधिकारों के अनुच्छेद 14, 25 और 26 का उल्लंघन करता है। उन्होंने आगे कहा कि यह विधेयक वक़्फ़ की स्वायत्तता और उसके प्रबंधन में सीधा हस्तक्षेप है। विशेष रूप से, वक़्फ़ बोर्ड में सदस्य के लिए मुस्लिम होने की अनिवार्यता को हटाना और दो गैर-मुस्लिम सदस्यों की अनिवार्य भागीदारी को लागू करना, वास्तव में मुस्लिम समुदाय से उनके धार्मिक और परोपकारी संस्थानों को संचालित करने का अधिकार छीनने के समान है। इसी तरह, वक़्फ़ ट्रिब्यूनल में शरीयत के जानकार की अनिवार्यता को समाप्त करना अत्यंत सांप्रदायिक कदम है, जिससे गंभीर समस्याएँ उत्पन्न होंगी।  ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस-ए-मुशावरत ने देश के न्यायप्रिय नागरिकों से अपील की है कि वे इन संशोधनों को लागू होने से रोकने के लिए हर संभव कदम उठाएँ, क्योंकि इनके सामाजिक और आर्थिक दुष्प्रभाव और वक़्फ़ संपत्तियों पर पड़ने वाले प्रभाव स्पष्ट और गंभीर हैं।  मजलिस-ए-मुशावरत के अध्यक्ष ने यह भी कहा कि संगठन अपनी सदस्य इकाइयों, अन्य मुस्लिम संगठनों और धर्मनिरपेक्ष दलों और नेताओं के साथ मिलकर वक़्फ़ संपत्तियों पर मंडरा रहे खतरों के खिलाफ एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन शुरू करेगा। उन्होंने यह भी कहा कि बीजेपी ने संसद का उपयोग अपने झूठे और भ्रामक प्रचार को फैलाने के लिए किया है और उसका पालतू मीडिया देश में मुसलमानों के खिलाफ सांप्रदायिक माहौल बना रहा है। यदि इसे नहीं रोका गया, तो यह देश को गंभीर नुकसान पहुँचाएगा। उन्होंने कहा कि बीजेपी मुस्लिम समुदाय को गुमराह करने और आपसी फूट डालने की साजिश कर रही है, यह झूठा प्रचार कर रही है कि यह विधेयक मुस्लिम समाज के पिछड़े वर्गों के कल्याण के लिए लाया गया है। उन्होंने जनता दल (यूनाइटेड), तेलुगु देशम पार्टी और बीजेपी की अन्य सहयोगी पार्टियों को चेतावनी दी है कि इस विवादास्पद और सांप्रदायिक आधार पर लाए गए विधेयक का समर्थन करना उन्हें भारी कीमत चुकाने पर मजबूर करेगा।

संभल की जामा मस्जिद के अध्यक्ष ज़फ़र अली एडवोकेट की गिरफ्तारी की निंदा

“उत्तर प्रदेश में खुद पुलिस ही कानून व्यवस्था और समाज की शांति के लिए खतरा बन रही है” – फिरोज अहमद एडवोकेट नई दिल्ली: संभल की शाही जामा मस्जिद के अध्यक्ष ज़फ़र अली एडवोकेट की फर्जी आरोपों में गिरफ्तारी अत्यंत निंदनीय है। पुलिस का कर्तव्य कानून और न्याय की रक्षा करना और समाज में शांति बनाए रखना है, लेकिन दुर्भाग्यवश, उत्तर प्रदेश पुलिस बार-बार कानून व्यवस्था को नुकसान और सामाजिक सद्भाव को ठेस पहुंचा रही है। संभल के एक सम्मानित व्यक्ति, प्रसिद्ध वकील और जामा मस्जिद प्रबंधन समिति के अध्यक्ष की गिरफ्तारी इसका ज्वलंत उदाहरण है।ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस-ए-मुशावरत के अध्यक्ष फिरोज अहमद एडवोकेट ने आज कहा कि होली के अवसर पर संभल पुलिस के एक अधिकारी द्वारा दिए गए बयान की पहले से ही चौतरफा निंदा हो रही थी, और अब ज़फ़र अली एडवोकेट की गिरफ्तारी से अशांति बढ़ गई है और शहर के वकीलों में जबरदस्त आक्रोश है। उत्तर प्रदेश पुलिस बार-बार राज्य के मुसलमानों के धैर्य की परीक्षा ले रही है।फिरोज अहमद ने आगे कहा कि संभल में शाही मस्जिद के सर्वेक्षण की आड़ में पुलिस ने सांप्रदायिक तत्वों के साथ मिलकर जिस तरह हिंसा भड़काई और मासूम युवकों की हत्या की, उसने भारत की लोकतांत्रिक छवि को विश्वभर में बदनाम कर दिया है।संभल जामा मस्जिद समिति के अध्यक्ष ज़फ़र अली एडवोकेट को 24 नवंबर के दंगों की साजिश और अन्य आरोपों के तहत रविवार को गिरफ्तार किया गया। इस गिरफ्तारी के लिए पूरे शहर को छावनी में तब्दील कर दिया गया था। संभल थाने में कई पुलिस स्टेशनों से अतिरिक्त बल बुलाए गए थे। पीएसी और आरआरएफ की कई कंपनियां तैनात कर दी गईं। शहर के प्रमुख स्थानों पर सुरक्षा बलों की भारी तैनाती कर भय और आतंक का माहौल बना दिया गया।संभल में पुलिस और सरकार जो माहौल बना रही है, वह राज्य में सामाजिक शांति और स्थिरता को अपूरणीय क्षति पहुंचा रहा है।

मुस्लिम शिक्षण संस्थानों को निशाना बनाये जाने पर मुस्लिम मजलिसे-मुशावरत की कड़ी प्रतिक्रिया

यूएसटीएम के संस्थापक महबूबुल हक की गिरफ्तारी की निंदा, सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति से हस्तक्षेप की अपील *प्रतिष्ठित नागरिक की गिरफ्तारी न्याय का उन्मूलन, *प्रगतिशील व्यक्तियों के एक विशेष वर्ग को हतोत्साहित करने की साजिश, *जामिया मिलिया इस्लामिया में अल्पसंख्यक कोटे से छेड़छाड़ भी अस्वीकार्य। नई दिल्ली: भारत के विभिन्न राज्यों में भाजपा सरकारें लगातार मुस्लिम शिक्षण संस्थानों को निशाना बना रही हैं, जो अत्यंत असहनीय और निंदनीय है। ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस-ए-मुशावरत के अध्यक्ष फिरोज अहमद ने आज इस पर गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि असम में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, मेघालय (यूएसटीएम) के संस्थापक और कुलाधिपति महबूबुल हक की गिरफ्तारी राजनीतिक बदले की कार्रवाई और न्याय की खुली पामाली है। इससे पहले जयपुर में मौलाना आजाद यूनिवर्सिटी के अतीक अहमद को परेशान किया गया, उत्तर प्रदेश में ग्लोकल यूनिवर्सिटी की संपत्ति जब्त की गई और रामपुर में मौलाना जौहर यूनिवर्सिटी पर लगातार निर्मम कार्रवाई जारी है। सुप्रीम कोर्ट और भारत के राष्ट्रपति से हस्तक्षेप की मांग करते हुए, मुशावरत के अध्यक्ष ने कहा कि एक सम्मानित नागरिक, प्रसिद्ध बुद्धिजीवी, शिक्षाविद और देश व समाज के निस्वार्थ सेवक की गिरफ्तारी और क़ैद का उद्देश्य समाज में प्रगतिशील व्यक्तियों के एक विशेष वर्ग को हतोत्साहित करना है। उच्च शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा के आधुनिक धर्मनिरपेक्ष संस्थानों की स्थापना के प्रयासों को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। उन्होंने आगे कहा कि महबूबुल हक की गिरफ्तारी पूरी तरह से राजनीतिक प्रतिशोध की कार्रवाई है। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि उच्च पदों पर बैठे सांप्रदायिक तत्व NAAC से ‘ए’ ग्रेड प्राप्त संस्थान को कट्टरपंथी और प्रतिगामी करार देकर उनकी प्रतिष्ठा को धूमिल करने का प्रयास कर रहे हैं। इसे किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता फिरोज अहमद ने उन रिपोर्टों पर भी चिंता व्यक्त की, जिनमें कहा गया है कि जामिया मिलिया इस्लामिया के नए कुलपति आसिफ मजहर का इस्तेमाल विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे को छति पहुंचाने के लिए किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि जामिया में लागू अल्पसंख्यक कोटे के साथ किसी भी तरह की छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं की जाएगी। यूएसटीएम चांसलर की गिरफ्तारी से उभरे गंभीर सवाल: पिछले सप्ताह, असम पुलिस ने एक छापेमारी की और फ़र्ज़ी जाति प्रमाण पत्र बनाने के आरोप में यूएसटीएम चांसलर महबूबुल हक को गिरफ्तार किया, जिससे कार्रवाई के पीछे के उद्देश्यों पर गंभीर सवाल उठे। असम पुलिस के विशेष कार्य बल (एसटीएफ) और श्री भूमि जिला पुलिस की एक टीम ने उन्हें गुवाहाटी में उनके आवास से हिरासत में लिया। उनके खिलाफ श्री भूमि जिले में फर्जी जाति प्रमाण पत्र बनाने का मामला दर्ज किया गया था। पिछले साल, मानसून के मौसम में, गुवाहाटी में जलभराव हुआ था, और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने इसके लिए विश्वविद्यालय को दोषी ठहराया, इसके खिलाफ मामला दर्ज करने का आदेश दिया। सरमा ने इसे “बाढ़ जिहाद” तक करार दिया। इससे पहले, उन्होंने आरोप लगाया था कि गुवाहाटी के आसपास की पहाड़ियों में वनों की कटाई से बाढ़ आई है, जिसके लिए यूएसटीएम जैसे निजी संस्थानों को जिम्मेदार ठहराया गया था। सरमा ने आगे दावा किया कि श्री भूमि जिले के बंगाली मूल के मुस्लिम और यूएसटीएम के संस्थापक महबूबुल हक गुवाहाटी में “बाढ़ जिहाद” में शामिल थे। यूएसटीएम का योगदान और सरकार का निंदनीय रवैया: पूर्वोत्तर भारत में सुपर-स्पेशियलिटी स्वास्थ्य सेवाओं की मांग को देखते हुए, यूएसटीएम 150 सीटों के साथ पी.ए. संगमा इंटरनेशनल मेडिकल कॉलेज और अस्पताल की स्थापना कर रहा है। यह आधुनिक 1,100 बिस्तरों वाला सुपर-स्पेशियलिटी अस्पताल शीर्ष स्तरीय स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने के लिए उन्नत बुनियादी ढांचे से लैस है। इस अस्पताल से पूर्वोत्तर राज्यों के नागरिकों को उन्नत स्वस्थ सेवा मिलने की उम्मीद है, जिन्हें वर्तमान में विशेष चिकित्सा उपचार के लिए कोलकाता जाना पड़ता है। यह बांग्लादेश, भूटान और नेपाल सहित पड़ोसी आसियान देशों की स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों को भी पूरा करेगा, जिससे चिकित्सा पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। हालांकि, असम सरकार यूएसटीएम के संस्थापक डॉ. महबूबुल हक को अनुचित तरीके से प्रताड़ित कर रही है। असम सरकार ने विश्वविद्यालय और डॉ. हक दोनों के साथ खुलकर शत्रुओं जैसा व्यवहार किया और आरोप लगाया है। यहां तक कि यह भी घोषणा की गई कि यूएसटीएम के स्नातकों को असम में नौकरी नहीं दी जाएगी, यह कदम मुख्यमंत्री ने विशुद्ध रूप से राजनीतिक उद्देश्य उठाया है।